Delhi High Court : रेस्तरां 31 अगस्त तक सेवा शुल्क लेने के लिए स्वतंत्र, हाईकोर्ट खंडपीठ का रोक लगाने से इनकार
अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Fri, 19 Aug 2022 12:37 AM IST
सार
Delhi High Court : फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्त्रां ऑफ इंडिया ने एएसजी के तर्क का विरोध किया और कहा कि उत्पाद की कीमतों में बढ़ोतरी से अन्य संबंधित और संबंधित पक्षों को फायदा होगा न कि कर्मचारियों को।
विस्तार
Delhi High Court : दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को रेस्तरां में खाने के बिल पर सेवा शुल्क मुद्दे पर केंद्र सरकार व केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण-सीसीपीए को अपने दिशा निर्देश पर लगी रोक को हटाने के लिए पुन: सिंगल जज के पास जाने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी सेवा शुल्क वसूलने पर रोक संबंधी सिंगल जज के अंतरिम आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को सिंगल जज के समक्ष अपना जवाब दाखिल करने की स्वतंत्रता दी और निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई 31 अगस्त को होगी। हालांकि पहले सुनवाई नवंबर माह तय थी। इसी के साथ पीठ ने सीसीपीए की अपील का निपटारा कर दिया।
खंडपीठ केंद्र और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एकल न्यायाधीश ने सेवा शुल्क वसूलने संबंधी दिशा निर्देश पर रोक लगा दी थी। अदालत ने होटल और रेस्तरां के राष्ट्रीय रेस्तरां एसोसिएशन द्वारा याचिकाओं पर विचार करते समय खाद्य बिलों पर स्वचालित रूप से सेवा शुल्क लगाने से रोक दिया गया था।
खंडपीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश लंबित अंतिम सुनवाई के आवेदनों के संबंध में उचित आदेश पारित कर सकते है।अपीलकर्ताओं की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने दलील दी कि सेवा शुल्क अर्ध-सरकारी या सरकारी प्रभार के रूप में माना जा रहा है और यदि कोई भुगतान करने से इनकार करता है तो शर्मिंदगी का कारण बनता है।
हालांकि गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि रेस्तरां अपने कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए कानून में बाध्य हैं और ग्राहकों को इसके लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है। इस बीच यह तर्क देते हुए सीसीपीए ने दोहराया कि सेवा शुल्क लगाना जनता द्वारा सरकारी लेवी के रूप में माना जाता है। कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी उपाय के रूप में अदालतों के समक्ष आरोप किए।
सीसीपीए ने खंडपीठ के समक्ष अपील की है कि उसके दिशा-निर्देशों पर रोक हटाने का आग्रह किया जाए। याची की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि सेवा शुल्क उपभोक्ता विरोधी है और इसे अक्सर सरकारी लेवी के रूप में चित्रित किया जाता है। एएसजी ने तर्क दिया कि रेस्तरां को उपभोक्ताओं से एक अलग शुल्क वसूलने के बजाय सेवा शुल्क के लिए अपनी कीमतें बढ़ाने का सहारा लेना चाहिए।
फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्त्रां ऑफ इंडिया ने एएसजी के तर्क का विरोध किया और कहा कि उत्पाद की कीमतों में बढ़ोतरी से अन्य संबंधित और संबंधित पक्षों को फायदा होगा न कि कर्मचारियों को। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि कर्मचारियों और प्रतिष्ठानों के लाभ के लिए एक सेवा शुल्क लगाया जाता है, उसी पर माल और सेवा कर (जीएसटी) का भुगतान किया जाता है।
सिब्बल ने कहा कि वेटर स्टाफ ग्राहकों द्वारा भुगतान की जाने वाली टिप को जेब में रखता है, जबकि रसोई और सफाई कर्मचारियों सहित रेस्तरां के पूरे कर्मचारियों के बीच एक सेवा शुल्क वितरित किया जाता है। अदालत ने कहा कि कर्मचारियों को भुगतान करना एक प्रतिष्ठान के मालिक का एक बाध्य कर्तव्य और दायित्व है। अदालत ने कहा कि क्या उपभोक्ताओं पर इसके लिए शुल्क का बोझ डाला जा सकता है।
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