Type Here to Get Search Results !

Legal System: पी चिदंबरम ने कानून व्यवस्था पर उठाए सवाल, कहा- बिना ट्रायल के जेल में केवल गरीब ही तड़पते हैं

Legal System: पी चिदंबरम ने कानून व्यवस्था पर उठाए सवाल, कहा- बिना ट्रायल के जेल में केवल गरीब ही तड़पते हैं

पीटीआई, नई दिल्ली। Published by: देव कश्यप Updated Sun, 07 Aug 2022 12:16 AM IST
सार

कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने ट्वीट्स कर कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, सभी कैदियों में से 76 प्रतिशत विचाराधीन हैं। विचाराधीन कैदियों में से 27 प्रतिशत निरक्षर हैं, 41 प्रतिशत दसवीं पास भी नहीं हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम (फाइल फोटो)
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम (फाइल फोटो) - फोटो : Facebook

विस्तार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने देश के कानून व्यवस्था पर सवाल उठाया है। पी चिदंबरम ने शनिवार को आरोप लगाया कि देश में कानूनी व्यवस्था विकृत है और बिना परीक्षण या जमानत के केवल गरीब ही जेल में तड़प रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि अधिकांश विचाराधीन कैदी गरीब हैं और उत्पीड़ित वर्गों से हैं, उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम आदेश से ऐसे लोगों को कुछ राहत मिलेगी।


चिदंबरम ने ट्वीट्स कर कहा कि "एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, सभी कैदियों में से 76 प्रतिशत विचाराधीन हैं। विचाराधीन कैदियों में से 27 प्रतिशत निरक्षर हैं, 41 प्रतिशत दसवीं पास भी नहीं हैं। इसका क्या मतलब है? कि अधिकांश विचाराधीन कैदी गरीब हैं और सबसे अधिक संभावना है कि ये उत्पीड़ित वर्गों के बीच से हैं।” उन्होंने कहा, "कानूनी व्यवस्था इतनी विकृत है कि बिना परीक्षण (Trial) और जमानत के केवल गरीब ही जेल में तड़पते हैं।"


पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में विचाराधीन कैदियों का अनुपात 91 फीसदी है। चिदंबरम ने कहा, "मुझे यकीन है कि उनमें से ज्यादातर हिंसा भड़काने या इसमें शामिल होने के आरोप में जेल में बंद हैं, जो अभी तक अप्रमाणित है। ऐसे में यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम आदेश से इन गरीब, असहाय कैदियों को राहत मिलती है या नहीं।"

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा था कि जेलों में बंद की रिहाई और अदालतों में आपराधिक मामलों के बोझ को कम करने के लिए कुछ "आउट ऑफ द बॉक्स" सोच की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 'आजादी का अमृत महोत्सव' को लेकर सरकार से ऐसे विचाराधीन कैदियों को रिहा करने की सलाह दी है जिन्होंने अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिताया है। न्यायालय ने कहा कि इससे जेलों में कैदियों के दबाव कम होने के साथ-साथ निचली अदालतों में लंबित मामलों के बोझ भी कम होंगे। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने देश के उच्च न्यायालयों में अपील और जमानत याचिकाओं के लंबित मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि निचली अदालतों में अवरुद्ध पड़े आपराधिक मामलों को बंद करना एक महत्वपूर्ण पहलू है। शीर्ष अदालत ने पिछले सप्ताह दोषी कैदियों की जमानत याचिकाओं पर उनकी अपील लंबित होने की सुनवाई में ज्यादा देरी पर नाराजगी व्यक्त की थी।

अदालत ने कहा कि 10 साल तक मामले की सुनवाई के बाद अगर आरोपी आरोपमुक्त हो जाता है तो उसके जीवन को कौन लौटा देगा। अगर हम 10 साल के भीतर किसी मामले का फैसला नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें आदर्श रूप से जमानत दे दी जानी चाहिए. अदालत ने एएसजी को इन सुझावों पर सरकार को अवगत कराने के लिए कहा।


from Latest And Breaking Hindi News Headlines, News In Hindi | अमर उजाला हिंदी न्यूज़ | - Amar Ujala

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.